Saturday 8 April 2017

अबलौं नसानी, अब न नसैहौं

भाग - ३ 
यहां विकास का साधन वो नहीं है, जो कार्ल माक्र्स वाला है। विकास का साधन वह नहीं है, जो अल्बर्ट आइंस्टीन वाला है। विकास का साधन वह नहीं है, जो यहां-वहां दिख रहा है, तमाम चीन, मांस खाना, अवैध जीवन जीना और जीवन में कहीं कोई वंदन नहीं, कोई मर्यादा नहीं, केवल खाना और उसके लिए कैसे भी कमाना। गोली चलवाकर, युद्ध करवाकर। कैसे भी वस्त्र पहनकर, कैसे भी बोलकर, कैसे भी सोकर - ऐसा विकास कोई विकास नहीं है। ये कौन-सा विकास है? किसी भी समाज में यह नहीं चलेगा कि मेरी पत्नी मेरे सामने से उठकर दूसरे के साथ चली जाए। चलेगा क्या? यह चीन में भी नहीं चलेगा। जब बिल क्लिंटन ने अपने ऑफिस की किसी महिला के साथ मन जोड़ा, तो उनकी बड़ी निंदा हुई। यहां तो भतृहरि ने जब अपनी पिंगला को देखा, रानी पिंगला को कि मेरे नौकर के साथ ही मन बना रही है, तो उन्होंने संन्यास ले लिया। 
यां चिन्तयामि सततं... वैसा विरक्त क्या बात है। कहा कि मैं तो इसे जी जान से मानता हूं और यह मेरे नौकर के साथ ही पार्टी बना रही है। नौकर वैश्या के साथ पार्टी बनाए हुए था और वैश्या महाराज भतृहरि के साथ...। राजा ने जो दिया था पत्नी को, पत्नी ने अपने प्रेमी को, प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को और प्रेमिका ने राजा को दे दिया। यह बहुत बड़ी घटना हुई, लेकिन केवल भतृहरि को वैराग्य हुआ। यहां बिल क्लिंटन की उस अवैध रीति से जो प्रेम प्राप्ति का, सुख प्राप्ति का जो अत्यंत ही अमर्यादित स्वरूप है। पूरा अमेरिका व गोमांस खाने वाले भी खड़े हो गए कि ऐसा व्यक्ति राष्ट्रपति पद पर नहीं चाहिए। व्हाइट हाउस खाली करो। बिल क्लिंटन को क्षमा याचना करनी पड़ी। 
वेदों की स्थापना ही चरित्र के लिए हुई है। हर ऐसे मूल्यों की स्थापना वेदों ने की, जिसकी जरूरत अनादि संसार में हमेशा रही है और वही विकास का सबसे बड़ा साधना था, है और रहेगा। 
जो चाहे, वह खा लिया, जो चाहे पहन लिया, कैसे रह रहे हैं लोग। यह जो विकास की पद्धति पूरी दुनिया में छाई हुई है। विज्ञान, भौतिक अनुसंधान। बम बना, नागासाकी, हिरोशिमा में लाखों लोग मारे गए। 
राम मनोहर लोहिया जी ने एक बार आइंस्टीन से पूछा कि आपने जो अनुसंधान किया और उससे यह जो बम बनाया है, उससे कैसा महसूस कर रहे हैं। बताते हैं कि जवाब में आइंस्टीन रोने लग गए। 
यह विकास की जो सबसे अच्छी पद्धति थी। सबसे अच्छे साधनों का जो संस्थापन था और वह ईश्वर के द्वारा, वेदों के द्वारा, वेद के व्याख्यान द्वारा ही हमारा साहित्य आगे बढ़ा और हम लोग उसी मार्ग के लोग हैं। तभी तो मनु ने कहा कि इस देश के लोगों ने, इस देश के ब्राह्मणों और महर्षियों ने चरित्र की शिक्षा पूरी दुनिया को दी और विश्व गुरुत्व अर्जित हुआ था। केवल आपको पहला ज्ञान हो जाए, जो ज्ञान की प्राथमिक अवस्था है परोक्ष ज्ञान, उससे काम नहीं चलेगा, वह रावण को भी था। ज्ञान का परिपक्व स्वरूप होना चाहिए, जिसको अपरोक्ष ज्ञान कहते हैं, उसके बाद ज्ञान चरित्र में उतरना चाहिए। ज्ञान जब चरित्र में ही नहीं आया, तो कैसे चलेगा। महाभाष्य ने ज्ञान की चार अवस्थाओं का वर्णन किया है। इसके बाद ही आप ज्ञान दीजिए। 
क्रमश:

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