Monday 12 September 2011

प्रतिशोध की भावना क्यों?

(महाराज का एक प्रवचन)

सबके मन में प्रतिशोध की भावना होती है, सबके मन में यह भावना होती है कि उसके हिसाब से ही सारे काम हों। सबके अपने-अपने संकल्प होते हैं। लेकिन इसके लिए जो लोग हमारे विपरीत हैं, उनका हम क्या करें? हमें बनाना है राम राज्य और हम प्रयोग कर रहे हैं रावण राज का। सरेआम सड़क पर गलत काम हो, व्यभिचार हो, यह कदापि उचित नहीं। इस तरह से राम राज्य नहीं आएगा। रावण तो आतंकवाद का सबसे बड़ा प्रतीक हुआ। उसने तो राम जी की पत्नी का ही धोखे से अपहरण कर लिया। ब्राह्मणों की तो हत्या रोज ही होती थी, वेद ध्वनि बंद हो गई थी, यज्ञ बंद हो गए, माता-पिता का सम्मान बंद हो गया था, देवताओं का कोई सम्मान नहीं रहा। अर्थ यह कि धर्म की, श्रेष्ठता की, पवित्रता की, मर्यादाओं की, अच्छी परंपराओं की विधियां नष्ट हो गई थीं। दंड व प्रतिशोध का कोई विकल्प नहीं बच गया था।
दु:ख क्यों होता है?

No comments:

Post a Comment