Monday 19 September 2011

सत्संग


भगवान की दया से एक बार मैं सूरत से वाराणसी के लिए यात्रा कर रहा था। प्रात: काल का समय था, लोग सो रहे थे। मैं बैठे-बैठे ईश्वर की विराट अवस्था का अवलोकन कर रहा था। कितना बड़ा आकाश, बाग-बगीचे और हमारा अपना छोटा-सा दायरा। ट्रेन में सामने ही एक सज्जन मेरी ही तरह बैठे थे। बाकी सभी लोग सो रहे थे। उन्होंने कहा, 'महाराज, मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं।'
मैंने पूछा, 'यह प्रश्न आपके मन में कैसे आया?'
उन्होंने कहा, 'बार-बार मेरे मन में आ रहा है कि आपसे कुछ पूछूं, आपसे कोई गपशप हो।'

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