समापन भाग
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
पिछले जन्मों में भी आप ही रहे, कल भी आप ही रहेंगे। ऐसा ही जीवन और ऐसा ही व्यवहार और चिंतन, ऐसे ही संस्कार जब हम प्राप्त करेंगे, चिंतन की जो सर्वश्रेष्ठ अनुपम परंपरा है, तो हमारा जीवन अपने और दूसरों के लिए वरदान हो जाएगा। हमें बल सुकून सुंदरता देगा। भगवान से प्रार्थना है कि सभी लोगों को शास्त्र ज्ञान की परंपरा के अनुसार मंडित करें, व्यवहार का जीवन दें, व्यवहार को शुद्ध करें।
मैं कहा करता हूं कि भारत के प्रधानमंत्री अभी स्वच्छता अभियान चला रहे हैं, किन्तु इस स्वच्छता से लोकतंत्र सशक्त नहीं होगा। इस स्वच्छता से पार्टी का सामंजस्य सुदृढ़ नहीं होगा, परिवार का नहीं होगा, मानवता का नहीं होगा। जब तक हमारा मन शुद्ध नहीं होगा, हमारा चित्त शुद्ध नहीं होगा, हमारी बुद्धि शुद्ध नहीं होगी, हमारा अहंकार शुद्ध नहीं होगा, तब तक केवल झाडू लगाने से कुछ नहीं होगा। आज कितना गंदा है लोगों का मन। कोई दुर्गंध तो थोड़ी दूर तक प्रभावित करती है, किन्तु ये जो मन की दुर्गंध है, वह दूर तक प्रभावित करती है और आज कर रही है।
हमारा व्यवहार शुद्ध हो, शास्त्रों की कसौटी पर कसा हुआ हो, उसके माध्यम से परिपूर्णता व्यापकता हो, यही काम किया भारत के ब्राह्मणों ने, शास्त्रों ने संपूर्ण संसार को चरित्र की शिक्षा दी और चरित्र में सब व्यवहार आ गए। एक भी व्यवहार नहीं छूटा। यहां अब लोग केवल याद करवाते हैं, ऐसे ही क्लास में पढ़ा दिया और कोई चरित्र की शिक्षा नहीं दी।
दिल्ली के एक विद्वान बता रहे थे कि मैंने अपने कुलपति को कहा, लडक़े-लड़कियां परिसर में अश्लील मुद्रा में बैठे रहते हैं, आप उनको रोकिए।
कुलपति ने कहा कि इससे हमारा कोई मतलब नहीं कि किससे कौन चिपक कर बैठा है। हमारा काम केवल पढ़ाना है।
यह विश्वविद्यालय के कुलपति कह रहे हैं, तो परिणाम यह कि बच्चे मार रहे हैं अपने अध्यापकों को, जूतों से मार रहे हैं। यही स्थिति शिक्षण संस्थानों में कम या ज्यादा हो रही है। सुधारने की जरूरत है, केवल मोक्ष के लिए नहीं, अपने लिए भी यह लाभदायक है। यह हमारा पूर्ण विश्वास है। यह कोई रटी रटाई बात नहीं है। यह कोई आकाश का फूल नहीं। श्री राम ने, ऋषियों ने, हमारे पूर्वजों ने, हमारे ब्राह्मणों ने, संत जनों ने इसका प्रयोग करके सृष्टि को वरदान स्वरूप बनाया था। शास्त्रों की आवश्यकता सदा रहेगी, उचित व्यवहार की आवश्यकता संसार को सदा रहेगी, जिससे हमारा जीवन परिपूर्ण होगा और उसको बहुत सुदृढ़ता से स्थापित करने की आवश्यकता है।
जय सियाराम
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
पिछले जन्मों में भी आप ही रहे, कल भी आप ही रहेंगे। ऐसा ही जीवन और ऐसा ही व्यवहार और चिंतन, ऐसे ही संस्कार जब हम प्राप्त करेंगे, चिंतन की जो सर्वश्रेष्ठ अनुपम परंपरा है, तो हमारा जीवन अपने और दूसरों के लिए वरदान हो जाएगा। हमें बल सुकून सुंदरता देगा। भगवान से प्रार्थना है कि सभी लोगों को शास्त्र ज्ञान की परंपरा के अनुसार मंडित करें, व्यवहार का जीवन दें, व्यवहार को शुद्ध करें।
मैं कहा करता हूं कि भारत के प्रधानमंत्री अभी स्वच्छता अभियान चला रहे हैं, किन्तु इस स्वच्छता से लोकतंत्र सशक्त नहीं होगा। इस स्वच्छता से पार्टी का सामंजस्य सुदृढ़ नहीं होगा, परिवार का नहीं होगा, मानवता का नहीं होगा। जब तक हमारा मन शुद्ध नहीं होगा, हमारा चित्त शुद्ध नहीं होगा, हमारी बुद्धि शुद्ध नहीं होगी, हमारा अहंकार शुद्ध नहीं होगा, तब तक केवल झाडू लगाने से कुछ नहीं होगा। आज कितना गंदा है लोगों का मन। कोई दुर्गंध तो थोड़ी दूर तक प्रभावित करती है, किन्तु ये जो मन की दुर्गंध है, वह दूर तक प्रभावित करती है और आज कर रही है।
हमारा व्यवहार शुद्ध हो, शास्त्रों की कसौटी पर कसा हुआ हो, उसके माध्यम से परिपूर्णता व्यापकता हो, यही काम किया भारत के ब्राह्मणों ने, शास्त्रों ने संपूर्ण संसार को चरित्र की शिक्षा दी और चरित्र में सब व्यवहार आ गए। एक भी व्यवहार नहीं छूटा। यहां अब लोग केवल याद करवाते हैं, ऐसे ही क्लास में पढ़ा दिया और कोई चरित्र की शिक्षा नहीं दी।
दिल्ली के एक विद्वान बता रहे थे कि मैंने अपने कुलपति को कहा, लडक़े-लड़कियां परिसर में अश्लील मुद्रा में बैठे रहते हैं, आप उनको रोकिए।
कुलपति ने कहा कि इससे हमारा कोई मतलब नहीं कि किससे कौन चिपक कर बैठा है। हमारा काम केवल पढ़ाना है।
यह विश्वविद्यालय के कुलपति कह रहे हैं, तो परिणाम यह कि बच्चे मार रहे हैं अपने अध्यापकों को, जूतों से मार रहे हैं। यही स्थिति शिक्षण संस्थानों में कम या ज्यादा हो रही है। सुधारने की जरूरत है, केवल मोक्ष के लिए नहीं, अपने लिए भी यह लाभदायक है। यह हमारा पूर्ण विश्वास है। यह कोई रटी रटाई बात नहीं है। यह कोई आकाश का फूल नहीं। श्री राम ने, ऋषियों ने, हमारे पूर्वजों ने, हमारे ब्राह्मणों ने, संत जनों ने इसका प्रयोग करके सृष्टि को वरदान स्वरूप बनाया था। शास्त्रों की आवश्यकता सदा रहेगी, उचित व्यवहार की आवश्यकता संसार को सदा रहेगी, जिससे हमारा जीवन परिपूर्ण होगा और उसको बहुत सुदृढ़ता से स्थापित करने की आवश्यकता है।
जय सियाराम